ध्यान तुम्हें असली केंद्र देता है :-- ओशो
अगर तुम खोजोगे तो अंहकार कहीं नहीं मिलेगा। अगर तुम भीतर जाओगे, अगर तुम खोजोगे, तो तुम्हें वह कहीं नहीं मिलेगा। वह कभी था ही नहीं। मन एक झूठा परिपूरक है, भ्रांति है। उसकी थोड़ी उपयोगिता है; इसीलिए तुमने उसकी ईजाद कर ली है। क्योंकि तुम अपने असली होने को, अपने सच्चे केंद्र को नहीं जानते हो और केंद्र के बिना काम नहीं चल सकता है, इसलिए तुम ने एक काल्पनिक केंद्र निर्मित कर लिया है। और तुम उससे अपना काम चला लेते हो।
असली केंद्र का तुम्हें पता नहीं है, इसलिए तुमने एक झूठा केंद्र निर्मित कर लिया है। अहंकार एक झूठा केंद्र है, कामचलाऊ केंद्र है। केंद्र के बिना जीना कठिन है, काम चलाना कठिन है। तुम्हें काम चलाने के लिए एक केंद्र की जरूरत है। और तुम अपने असली केंद्र को नहीं जानते हो, इसलिए मन ने एक झूठा केंद्र निर्मित कर लिया है। मन परिपूरक निर्मित करने में, सब्स्टिटूयट बनाने में बहुत कुशल है। वह सदा परिपूरक चीजें तुम्हें पकड़ा देता है अगर तुम असली को न पा सके । अन्यथा तुम विक्षिप्त हो जाओगे। केंद्र के बिना तुम पागल हो जाओगे, खंड खंड हो जाओगे, कोई एकता नहीं रह जाएगी। इसलिए मन झूठा केंद्र निर्मित कर लेता है।
स्वप्न में ऐसा ही होता है। तुम्हें प्यास लगी है। अब अगर यह प्यास तीव्र हो जाए तो नींद में बाधा पड़ेगी, तुम्हें पानी पीने के लिए उठना पडेगा। अब तुम्हारा मन सल्लीटयूट निर्मित करेगा; वह एक स्वप्न निर्मित करेगा। अब तुम्हें उठना नहीं पड़ेगा; अब नींद में कोई बाधा नहीं होगी। तुम स्वप्न देखते हो कि तुम पानी पी रहे हो; तुम फ्रिज से पानी निकाल कर पी रहे हो। मन ने तुम्हें परिपूरक दे दिया, अब तुम निश्चित हो। असली प्यास बुझी नहीं है, बस धोखा दिया गया है। लेकिन अब तुम्हें लगता है कि मैंने पानी पी लिया। अब तुम सो रह सकते हो, तुम्हारी नींद अबाधित जारी रह सकती है।
सपनों में तुम्हारा मन निरंतर तुम्हें परिपूरक चीजें देता रहता है, ताकि तुम्हारी नींद न टूटे। और वही बात तुम्हारे जागते में भी होती है। मन तुम्हें विक्षिप्तता से बचाने के लिए परिपूरक देता रहता है; अन्यथा तुम खंड खंड हो जाओगे, बिखर जाओगे।
जब तक असली केंद्र का पता नहीं चलता, अहंकार की जरूरत रहेगी। और जब असली केंद्र जान लिया गया तो पानी के बारे में सपना देखने की जरूरत नहीं रहती है। ध्यान तुम्हें असली केंद्र देता है। और उसके साथ ही झूठे केंद्र की उपयोगिता समाप्त हो जाती है।
लेकिन यह बात ध्यान में आनी जरूरी है कि अहंकार तुम्हारा असली केंद्र नहीं है, तो ही तुम सत्य की खोज आरंभ कर सकते हो। और अध्यात्म अहंकार का रूपांतरण नहीं है; वह रूपांतरित नहीं हो सकता। वह असत्य है, वह है ही नहीं, तुम उसके साथ कुछ नहीं कर सकते हो। अगर तुम बोधपूर्ण हो, सजग हो, अगर तुम अपने भीतर उसका निरीक्षण करते हो, तो अहंकार विलीन हो जाता है। तुम्हारे बोध के प्रकाश में वह नहीं पाया जाता है। अध्यात्म अतिक्रमण है।
तंत्र सूत्र
ओशो
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