मैं अमरीका के पहले दो दिन जेल में बंद था। तीसरे दिन उस जेल से मुझे दूसरी जेल में ले जाया गया। उस जेल का जेलर तीसरे दिन मेरे पास कोठरी में अकेला आया। उसकी आंखों में आंसू थे। और उसने कहा, मुझे एक बात की क्षमा मांगनी है। मैंने कहा, आपके द्वारा मेरे ऊपर कोई अत्याचार नहीं हुआ है। मेरी सब तरह से सुविधा की आपने व्यवस्था की है, क्षमा किस बात की? उसने कहा कि क्षमा मुझे इस बात की मांगनी है कि पहले दिन जब आप जेल में आए तो कोई आधा घंटे बाद जर्मनी से एक फोन आया और उस फोन करने वाले ने पूछा कि भगवान, आपकी जल में हैं यह आपका सौभाग्य है। और शायद आपके पूरे जीवन में ,बीते और आने वाले जीवन में ऐसे कोई व्यक्ति आपकी जेल में दुबारा नहीं आएगा। मेरा आपसे कोई परिचय नहीं था, उस बूढ़े जेलर ने कहा, और अकड़ भी थी तो उसने जर्मन फोन करने वाले को कहा कि नहीं, मेरे जेल में बहुत बड़े-बड़े लोग आ चुके हैं। बैबिनेस्ट स्तर के मिनिस्टर भी मेरी जेल में बंद रह चुके हैं। तो यह कोई नयी अनूठी बात नहीं है।
तो मैंने कहा, इसमें कोई हर्जा नहीं है। इसमें मुझसे क्षमा क्या मांगनी है? उसने कहा कि हर्जा यह है कि मुझे इस आदमी के फोन का कोई पता नहीं है। तुम नए आए थे, तुम्हें जानता न था। फिर हजारों फोन आने शुरू हुए, तार आने शुरू हुए, टैलेक्स आने शुरू हुए और हजारों फूलों की डालियां आना शुरू हुई। ऐसा मेरे जले में कभी भी न हुआ था। जेल बड़ा था, छह सौ कैदी थे, लेकिन इतने फूल आए कि फूलों को रखने की जगह न रही। उसने मुझसे पूछा, इन फूलों का मैं क्या करूं? मैंने कहा, सारे विभाग जेल के हैं उनमें बांट दो। उसने कहा, बांटने का सवाल ही नहीं हैं। उन्हीं सब विभागों में तो फूल भरे हुए हैं। तो मैंने कहा, स्कूलों में, कलेजौ को, युनिवर्सिटी को, सब विभागों को, विद्यालयों को मेरी तरफ से फूल भेज दो। जिस कोठरी में मुझे रखा गया था...वह दिन में कम से कम छह बार मुझे मिलने आता था। नर्सें परेशान थीं, डाक्टर परेशान था क्योंकि वे कहते हैं यह आदमी कभी साल-छह महीने में एक बार इस तरफ आता था और यह दिन में दह बार यहां आता है। वह अपनी पत्नी और बच्चों को दिखाने के लिए मुझे अपने साथ लाया और कहा कि बस एक ही आकांक्षा है कि मेरे साथ और मेरे परिवार के साथ-साथ एक चित्र निकलवा लें और दस्तखत कर दें। दो महीने बात मैं रिटायर हो जाऊंगा। यह मेरे जीवन की सबसे बड़ी स्मृति है। क्योंकि मैंने कभी भी नहीं सोचा था कि तुम्हारी मौजूदगी से यह जेल भी मंदिर बन सकता है।
क्योंकि कैदियों ने टेलीविजन पर निरंतर मुझे देखा था। कई कैदियों के पास किताबें थीं। कुछ कैदियों ने ध्यान करने के प्रयोग किए थे। उन सबने प्रार्थना की जेलर से, कि यह हमारा सौभाग्य है कि वे तीन दिन के लिए हमारे जेल में हैं। हमें मौका दिया जाए कि हम उन्हें सुन सकें। हमें मौका दिया जाए कि वे हमें ध्यान करवा सकें। हमें मौका दिया जाए।
उस बूढ़े की यह कल्पना के बाहर था कि ये खतरनाक कैदी ध्यान करना चाहते हैं। और इन छह सौ कैदियों में एक भी मेरे विरोध में नहीं है। कोई डेढ़ सौ कर्मचारी जेल में होंगे, वे भी सब सम्मिलित होते थे ध्यान के लिए। और उसने एक आखिरी कदम उठाया जो कि कभी भी नहीं उठाया गया था। उसने मुझसे पूछा कि अनेक टेलीविजन स्टेशन, रेडियो स्टेशन पूछ रहे हैं कि क्या हम कुछ प्रश्न पूछने के लिए जेल के भीतर आ सकते हैं? इसका कोई इतिहास नहीं है। कोई जेल के भीतर इस तरह नहीं आ सकता। लेकिन उसने कहा कि मैंने उन सबको आज्ञा दी है आज सांझ सात बजे। अब मेरा कोई क्या बिगाड़ लेगा? दो महीने की कुल नौकरी है। ज्यादा से ज्यादा दो महीने पहले रिटायर हो जाऊंगा। उसने जेल के भीतर वर्ल्ड प्रेस कांफ्रैंस बुलायी। कोई सौ पत्रकार जेल के भीतर इकट्ठे किए। और जब मैं पत्रकारों से बोलने जा रहा था तो उसने कान में कहा कि इस बात की जरा भी चिंता न करना कि यह जेल है। और तुम्हें वही नहीं कहना है जो हमें अच्छा लगे...नहीं; तुम्हें वही कहना है जो अच्छा है। वह चाहे हमारे विरोध में हो।
और तीन दिन के बाद छोड़ते वक्त डाक्टर की आंखों में आंसू थे, नर्सों की आंखों में आंसू थे, जेलर की आंखों में आंसू थे। डाक्टर एक महिला थी और उसने कहा कि मैं नहीं चाहती कि आपको कभी इस जेल से छोड़ा जाए। मैंने कहा कि तेरी आकांक्षा तो ठीक है लेकिन सारी दुनिया में फैले मेरे संन्यासी रहा देख रहे हैं कि मुझे छोड़ा जाए। उसने कहा, इसलिए तो मैंने सिर्फ कहा कि मेरे मन का भाव है कि तुम सदा यहीं रहो। मैं मैं जानती हूं कि वहां हजारों लोग तुम्हारी प्रतीक्षा करते होंगे। जब तीन दिन में हम तुम्हारे साथ इतना मेल-जोल बढ़ा लिए, जो लोग वर्षों से तुम्हारे साथ हैं उनके दुख और चिंता को हम अनुभव कर सकते हैं लेकिन हमें भूल मत जाना।
- ओशो
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